यदि हिंदुस्तान के वर्तमान को समझना है तो हमें वर्तमान से लगभग 150 वर्ष पहले का इतिहास समझना बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है बिना उसके समझे वर्तमान को नहीं समझ सकते है इससे जुड़ा एक और सन्दर्भ है जिस तरह से आज के युवा/समान राजनैतिक दलों के द्वारा फैलाई गयी गंधी राजनीति/इतिहास को पढ़ और समझ रहे है यह बहुत दुखद है जो समाज राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जैसे महापुरुषों पर भी सवाल खड़े कर देते है इसीलिए आज का लेख 1930 का सविनय अवज्ञा आन्दोलन पर आधारित है|
यह लेख विभिन्न सिसर्च तथा अख़बारों और महान लेखकों की किताबों से लिया गया है| जंगल सत्याग्रह सन् 1929 ई. के 44वें लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वतन्त्रता का प्रस्ताव महात्मा गाँधी द्वारा प्रस्तुत किया गया।
इसके अनुसार काँग्रेस के संविधान की धारा में स्वराज्य का अर्थ पूर्ण स्वतन्त्रता कर दिया गया। जवाहरलाल नेहरू ने इस अधिवेशन के दौरान अपने अध्यक्षीय भाषण में आम जनता से आह्वान किया था कि विदेशी शासन से अपने देश को मुक्त कराने के लिए अब हमें खुला विद्रोह करना है और कामरेड आप लोग और देश के सभी लोग इसमें हाथ बँटाने के लिए सादर आमन्त्रित हैं।
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1930 का सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत कैसे हुयी:-
इस अधिवेशन के दौरान नववर्ष की पूर्व-बेला में 31 दिसम्बर 1929 की आधी रात को काँग्रेस ने “पूर्ण स्वराज्य” का नारा अपनाया और न केवल “वन्दे मातरम्” अपितु “इंकलाब जिन्दाबाद” के नारों के बीच भारतीय स्वतन्त्रता का प्रतीक राष्ट्रीय तिरंगा झण्डा फहराया। रावी नदी के तट पर इस समय एक ओर तो काफी प्रसन्नता एवं उल्लास का माहौल था, तो दूसरी ओर इस उत्तेजक क्षण में एक गम्भीर संकल्प भी था, क्योंकि आगामी वर्ष 1930 ई. कठिन संघर्ष का वर्ष बनने जा रहा था। इसी अधिवेशन में कॉंग्रेस की कार्यकारिणी को सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ करने की अनुमति प्रदान कर दी गई।
लाहौर अधिवेशन में पारित पूर्ण स्वाधीनता के प्रस्ताव को समस्त भारत में प्रसारित करने के उद्देश्य से 26 जनवरी 1930 ई. को “पूर्ण स्वराज्य दिवस मनाने का भी निश्चय किया गया। इस तारतम्य में मध्यप्रदेश के कुछ प्रमुख स्थानों एवं ग्रामीण अंचलों में भी इस दिन पूर्ण स्वाधीनता” की शपथ गई चूंकि महात्मा गाँधी जन-आन्दोलन के माने हुए विशेषज्ञ थे अतः फरवरी 1930 ई. में साबरमती आश्रम में होने वाली कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में सर्वसम्मति से गाँधीजी को जब एवं जिस जगह वह चाहे सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ करने का अधिकार दे दिया गया था|
सविनय अवज्ञा आन्दोलन की ओर ले जाने वाली परिस्थितियां:-
1. साइमन कमीशन का बहिष्कार – साइमन कमीशन के बहिष्कार के समय जनता के उत्साह को देखकर कॉंग्रेस नेताओं को विश्वास हो गया अब जनता किसी भी आन्दोलन हेतु तैयार है।
2. नेहरू रिपोर्ट के अन्तर्गत की गई माँग सरकार द्वारा अस्वीकार कर दी गई थी. अतएव असन्तोष व्याप्त था।
3. सन् 1928 व 1929 के बीच श्रमिक व कृषकों के अवरोध को देखते अधिराज्य दर्जे की माँग को सरकार द्वारा न मानना हुए यह आन्दोलन चलाना अनिवार्य हो गया।
4. सन् 1922 में यकायक असहयोग आन्दोलन स्थगित किए जाने से जनता में निराशा फैल गई थी, इसे दूर किया जाना आवश्यक था।
5. सन् 1929 की आर्थिक मन्दी ने भारत को भी प्रभावित किया था। वस्तुओं के दाम बढ़ रहे थे। जनता में इससे भी निराशा व्याप्त थी।
6. क्रान्तिकारियों की गतिविधियाँ बढ़ रही थी, अतएव गाँधीजी को चिन्ता थी कि कहीं देश पुनः हिंसात्मक प्रवृत्तियों की ओर अग्रसर न हो जाए।
7. सन् 1923 के बाद देश साम्प्रदायिकता की आग में झुलसता जा रहा था, इस पर अंकुश लगाने हेतु भी आन्दोलन आवश्यक था।
31 दिसम्बर 1929 को कांग्रेस ने पूर्ण स्वतन्त्रता का लक्ष्य रखा था, इसकी प्राप्ति के लिए भी आन्दोलन आवश्यक था। वास्तव में जनता के अनेक वर्गों में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध असन्तोष तथा कांग्रेस के कार्यों के प्रति इनमें बढ़ते उत्साह को देखकर काँग्रेस ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाने का निर्णय किया।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान महात्मा गाँधी का सत्याग्रह :-
इस अवज्ञा आन्दोलन और गाँधीजी सत्याग्रह को परिभाषित करते हुए महादेव देसाई एवं हरिभाऊ उपाध्याय ने गाँधीजी की संक्षिप्त आत्मकथा 1869-1920 का सम्पादन करते हुए लिखा है कि दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की नीतियों के विरुद्ध तमाम अहिंसक उपायों का अवलम्बन किया जाए और यदि उसके बाद भी अंग्रेज़ों की गोरी सरकार मनमानी करे तो भारतीयों को उनके आगे सिर नहीं झुकाना चाहिए। हम उनका हुक्म नहीं मानेंगे। इस शान्तिपूर्ण अवज्ञा, सविनय • अवज्ञा के फलस्वरूप जो कुछ दुःख सहना पड़े, वह सब सह लेना चाहिए। इस आन्दोलन को उस समय निष्क्रिय प्रतिरोध (passive resistance) कहते थे। बाद में बापू ने इसे सत्याग्रह की संज्ञा दे दी।
डॉ. पट्टाभि सीतारमैया ने अपनी पुस्तक द हिस्ट्री ऑफ इण्डियन नेशनल काँग्रेस में लिखा है –
लॉर्ड इर्विन जब भारत के वॉयसराय होकर आए तो उनके बारे में बताया गया कि वे सत्य, विनम्रता, क्षमा, उदारता और अहिंसा में विश्वास करने वाले सच्चे इसाई हैं, जो रविवार को प्रार्थना करना और पाप- मुक्ति की याचना करना कभी नहीं भूलते अतः इर्विन काल में ब्रिटिश सरकार की गलत नीतियों का विरोध करने के लिए अहिंसक सत्याग्रह का मार्ग अपनाने की गाँधीजी की अवधारणा को और भी बल मिला।
गाँधीजी ने नमक-कर लगाने को सरासर गलत मानते हुए 1 मार्च 1930 को लॉर्ड इर्विन को पत्र लिखा। प्रसिद्ध पत्रकार दुर्गादास राठौर ने अपनी पुस्तक इण्डिया फ्रॉम कर्जन टू नेहरू में यह पत्र इस प्रकार उद्धृत किया है।
इस देश का किसान जो नमक इस्तेमाल करता है उस पर भी आपने इतना टैक्स लगा दिया है कि बेचारा किसान कर के बोझ से दबा जा रहा है। भारत का दीन-हीन किसान अमीर लोगों से ज्यादा नमक खाता है… उसके पास रोटी खाने के लिए सिर्फ नमक ही तो है और उस पर आपने जो लगाया है यह तो खेतिहर मजदूर की तीन दिन की मज़दूरी के बराबर है। इसलिए मैं आपके इस नियम-कानून का अहिंसक विरोध करते हुए स्वयं नमक बनाकर आपका कानून तोडूंगा। हजारों सत्याग्रही मेरा साथ देंगे। इस चेतावनी के साथ उन्होंने लॉर्ड इर्विन को 11 दिन का समय दिया कि इस अवधि में वे नमक पर लगा हुआ कर वापस ले लें।
गाँधीजी ने निम्नलिखित 11 सूत्रीय माँगे भी लॉर्ड इर्विन के समक्ष प्रस्तुत :-
1. रुपए की विनिमय दर घटाकर 1 शिलिंग 4 पैसे की जाए।
2. लगान में 50 फीसदी कमी की जाए।
3. सिविल सर्विसेज के अधिकारियों के वेतन आये कर दिए जाएं।
4 सेना के व्यय में कम से कम 50 प्रतिशत की कमी की जाए।
5. रक्षात्मक शुल्क लगाए जाएं तथा विदेशी कपड़ों का आयात नियन्त्रित किया जाए।
6. तटीय यातायात रक्षा विधेयक पास किया जाए।
7. सी.आई.डी. खत्म की जाए या उस पर सार्वजनिक नियन्त्रण हो।
8. भारतवासियों को आत्मरक्षा के लिए आग्नेय अस्त्र रखने का लाइसेंस दिया जाए।
9. नमक पर सरकारी इज़ारेदारी और नमक-कर समाप्त किया जाए।
10. नशीली वस्तुओं का विक्रय बन्द किया जाए। 11. उन राजनैतिक बन्दियों को छोड़ दिया जाए जिन पर हत्या करने या हत्या का प्रयत्न करने का अभियोग नहीं था।
इन 11 सूत्रीय मांगों के साथ गाँधीजी ने चेतावनी दी थी कि यदि इन माँगों को स्वीकार नहीं किया तो वे 12 मार्च 1930 को नमक कानून का उल्लंघन करेंगे और गुजरात के समुद्री तट पर दाण्डी नामक गाँव में नमक बनाना प्रारम्भ करेंगे। वायसराय का उत्तर अत्यन्त असन्तोषजनक था। गाँधीजी ने लिखा “मैंने रोटी माँगी थी और मुझे पत्थर मिला”। इस प्रकार 12 मार्च 1930 ई. को सविनय अवज्ञा आन्दोलन अन्ततः दाण्डी यात्रा के साथ आरम्भ हो गया।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कार्यक्रम:-
1. प्रत्येक गाँव में नमक कानून तोड़कर नमक बनाया जाए।
2. विद्यार्थी सरकारी स्कूलों में जाना छोड़ दें।
3. राज्य कर्मचारी सरकारी नौकरियों को छोड़ दें।
4. शराब, अफीम और विदेशी कपड़ों की दुकानों पर स्त्रियों धरना दें।
5. विदेशी वस्त्रों की होली जलाई जाए।
6. जनता कर अदा न करे।
महात्मा गाँधी ने समस्त भारत की जनता से नमक सत्याग्रह का आह्वान किया। महात्मा गाँधी के नमक सत्याग्रह के आह्वान पर मध्यप्रदेश में भी इसके समर्थन में आन्दोलन हुए।
पं. द्वारका प्रसाद मिश्र ने मेरा जिया आयु में लिखा है:-
कि. कीभर नमक उठाना, देशव्यापी किसी मशीन के बटन को दबाने की तरह था, जिससे पूरा राष्ट्र गतिशील हो गया। भारत के नगर और ग्रामों में बड़ी-बड़ी सभाएं हुई। नमक कानून तोड़कर विदेशी शासन पर अवक्षा का प्रहार किया गया। आरम्भ में गांधीजी की इस यात्रा का मजाक उड़ाया गया लेकिन दाण्डी में सुलगाई गई चिंगारी जब ज्वलित होकर पूरे देश में फैल गई तो परिहास जबर्दस्त धक्के में परिवर्तित हो गया। शासन की समझ में आ गया कि गाँधीजी ने पहली बाजी मार ली और नमक बनाने का काम कर काँग्रेस जनों ने देश के हर गाँव और नगर में अंग्रेजी शासन की प्रतिष्ठा धूल में मिला दी है। संत्रस्त होकर शासन ने दमन का सहारा लिया।
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