वैसे तो मोती लाल नेहरु के बारे में बहुत कुछ बोला जाता कोई कहता है यह मुश्लिम थे तो कोई कुछ और कहता है लेकिन आज अच्छे से मोतीलाल नेहरु के बारे में जानेंगे जो कि सब कुछ रिसर्च के द्वारा लिखा गया है |
मोती लाल नेहरु जन्म:-
इनका का जन्म 6 मई 1861 को आगरा, उत्तर प्रदेश में एक कश्मीरी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम गंगाधर नेहरु जोकि दिल्ली के चीफ ऑफ़ पुलिस हुआ करते थे, कहते है जब पहला वर्डवार(world war ) हुआ उस समय इनके पिता दिल्ली छोड़कर आगरा में बसने के लिए आ गये थे |
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मोती लाल नेहरु बचपन:-
इनका बचपन खेतड़ी, राजस्थान में वीता, खेतरी जो कि उस समय राजस्थान में हुआ करता था जहां उनके बड़े भाई नंदलाल ‘दीवान’ थे। उस समय खेतरी में राजा फतहसिंह हुआ करते थे जिन्होंने मोती लाल नेहरु के भाई को दीवान बनाया था उस समय का दीवान और आज के मुख्यमत्री दोनों बरावर हुआ करते थे |
इनकी प्रारंभिक शिक्षा अरबी, फारसी और अंग्रेजी का पाठ पढ़ाया गया क्योंकि इन्होने गवर्नमेंट हाई स्कूल, कानपुर से स्कूली शिक्षा पूरी की थी
उसके बाद कानूनी पड़ाई के लिए इलाहाबाद के मुइर सेंट्रल कॉलेज, जोकि इलाहाबाद (अब प्रयागराज) है से कानून की डिग्री प्राप्त की।
विवाह:-
इनका विवाह एक किशोर के रूप मेंहुआ लेकिन प्रसव के दौरान इनकी पत्नी और पहले जन्मे बेटे दोनों को खो दिया। जल्द ही, इन्होने अपने भाई नंदलाल को भी खो दिया, इनके कन्धों पर दुःख का भार टूट पड़ा|
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दूसरा विवाह:-
मोती लाल नेहरु ने दूसरा विवाह स्वरूप रानी कौल से किया, विवाह के बाद 1889 में, उन्होंने एक बेटे, जवाहरलाल और दो बेटियां विजयलक्ष्मी पंडित और कृष्णा नेहरू को जन्म दिया
आजीविका:-
जब इनके भाई का देहांत हो गया तो उनकी विधवा पत्नी और 7 बच्चों की देख रेख के साथ-साथ, मोतीलाल ने 1883 में कानपुर में कानून का अभ्यास शुरू किया, कुछ दिनों के बाद एक वकील के रूप में इलाहाबाद में उच्च न्यायालय बार में शामिल हो गए|
जैसे-जैसे मोतीलाल अपने कानूनी करियर में आगे बढ़े, उनके जीवन स्तर में भी नाटकीय रूप से सुधार होने लगा, ऐसा किताबों में लिखा है कि वह अपने जीवन में सबसे अमीर भारतीयों में से एक थे।
राजनीति का सफ़र:-
इधर एक तरफ कांग्रेस के भीतर नरमपंथी और उग्रवादी गुटों के बीच संघर्ष हो रहा था जिसमें गरम दल के नेता कुछ कह रहे थे और नरम दल के नेता कुछ और, इसीलिए उन्हें इस विचार ने राजनीतिक क्षेत्र में ला खड़ा किया,उन्होंने सुरेंद्र नाथ बनर्जी और गोपाल कृष्ण गोखले के साथ उदारवादी गुट को चुना।
वर्ष 1900 के बाद का सफ़र:-
46 वर्ष की आयु में, मोतीलाल ने 1907 में इलाहाबाद में आयोजित नरमपंथियों के एक प्रांतीय सम्मेलन की अध्यक्षता की उसके बाद 1909 के मॉर्ले-मिंटो सुधारों के बाद, मोतीलाल संयुक्त प्रांत विधान परिषद के सदस्य बने।
यह 1916 में एनी बेसेंट द्वारा शुरू किए गए होम रूल आंदोलन में भी सक्रिय रूप से भाग लिया लेकिन ज्यादा दिनों तक इस आन्दोलन में अपना योगदान नहीं दिया क्योंकि इनके विचार और एनी बेसेंट के विचार बहुत ज्यादा नहीं मिलते थे इसलिए इन्होने अपना रस्ता अलग बनाने की सोच रखी थी
बाद में इनको पायनियर अखबार ने इन्हें ‘होम रूल लीग के ब्रिगेडियर जनरल’ की उपाधि से सम्मानित किया।
दैनिक समाचार पत्र:-
मोतीलाल ने 1919 में दैनिक समाचार पत्र, द ए इंडिपेंडेंट, भी लॉन्च किया, जिसे शुरू करने के दौरान गंभीर वित्तीय नुकसान का सामना करना पड़ा। उन्हें उसी वर्ष अमृतसर कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता के लिए भी चुना गया था
महात्मा गांधी की शरुआत:-
उन्होंने महात्मा गांधी के नेतृत्व वाले असहयोग आंदोलन को अपना समर्थन दिया और उसमें भाग लिया। इसका उन पर बहुत प्रभाव पड़ा, क्योंकि उन्होंने अपनी पश्चिमी जीवन शैली को त्याग दिया और खादी की ओर रुख किया यहाँ तक कि इन्होने अपने कानूनी करियर को भी छोड़ दिया।
स्वराज पार्टी का गठन:-
एक साल के बाद वर्ष 1923 में सीआर दास के साथ अपना खुद का राजनीतिक संगठन स्वराज पार्टी की स्थापना की, स्वराज का मतलब हिंदी में, ‘स्वशासन’ है। इसे कांग्रेस की राजनीतिक शाखा के रूप में देखा जाता था। लेकिन जब इन्होने स्वराज पार्टी का गठन किया उस समय इनके ही बेटे जो लंदन से पढ़ कर भारत वापस आये थे उन्होंने ही इस पार्टी के साथ कार्य नहीं किया
हालाँकि, पार्टी को 1927 तक भंग कर दिया गया था क्योंकि यह अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में असमर्थ थी उसके बाद सब कुछ कांग्रेस में मिल गया |
महत्त्वपूर्ण समय:-
- 1928 में, मोतीलाल ने नेहरू रिपोर्ट तैयार करने वाली समिति की अध्यक्षता की – एक स्वतंत्र भारत के लिए एक मसौदा संविधान – जिसे साइमन कमीशन के गठन के जवाब में लिखा गया था।
- कानूनी शैली में लिखी गई इस रिपोर्ट में 22 अध्याय और 87 लेख शामिल हैं , जिसमें भारत के लिए प्रभुत्व की स्थिति का दावा किया गया है, और इसमें मौलिक अधिकारों पर अनुभाग शामिल हैं लेकिन इसे ब्रिटेन ने खारिज कर दिया था।
- रिपोर्ट की अस्वीकृति के बाद, मोतीलाल ने 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रखा। उसी वर्ष, उन्होंने अपना निवास आनंद भवन कांग्रेस पार्टी को मुख्यालय के रूप में उपयोग करने के लिए दे दिया यहाँ तक की सबसे ज्यादा कांग्रेस की मीटिग इसी भवन में हुआ करती थी |
इन्होने दूसरा विवाह स्वरूप रानी कौल (Swarup rani Kaul) हुआ और उन्हीं से एक बच्चे का जन्म हुआ जिनका नाम ज्वाहर लाल नेहरु | पहली पत्नी का देहांत होने के बाद दूसरा विवाह कारना पड़ा था |
इनकी दो पत्नियाँ थी , पहला विवाह बहुत ही छोटी आयु में हो गया था , जब इनकी पहली पत्नी गर्भवर्ती हुयी प्रशव के दौरान इनकी पत्नी और बच्चे का देहांत हो गया इसके बाद इन्होने दूसरा विवाह किया जिसका नाम स्वरूप रानी कौल था |
पिता का नाम गंगाधर नेहरु दिल्ली के चीफ ऑफ़ पुलिस थे
3 बच्चे थे एक बेटा और दो बेटियां, जिनका नाम जवाहर लाल लहरू , विजय लक्ष्मी पंडित और कृष्णा नेहरु था आगे चलकर जवाहर लाल नेहरु भारत देश के पहले प्रधानमंत्री के रूप में 17 वर्षो तक देश की सेवा की |
पायनियर अखबार ने इन्हें ‘होम रूल लीग के ब्रिगेडियर जनरल’ की उपाधि से सम्मानित किया था
इनका का जन्म 6 मई 1861 को आगरा, उत्तर प्रदेश में एक कश्मीरी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इसके 2 और भाई थे जिनका नाम वंशीधर नेहरु दूसरे भाई का नाम नन्दलाल नेहरु था |
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