भारत देश में यह हमेसा से बहुत बड़ा विषय रहा है जिसमे अलग – अलग विद्वानों की अलग-अलग राय रही है आज भी वही विचारधारा नजर आती है जिसमें एक आवादी मानती है मृत्युदंड अमानवीय है वहीँ दूसरी तरफ एक आवादी है जो इसको मानवीय कहती है
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में एक पेटीशन डाली गयी है जिसमे कहा गया है कि जो फांसी का कानून है वह बहुत ही दुखदायी और पीड़ाजनक है उस पर ध्यान दिया जाये |
उचतम न्यायलय मृत्युदंड को अधिक मनवीय और कम पीड़ा दायक बनाने के लिए फंसी पर पुर्नविचार कर रही है |
न्यायलय समय- समय पर प्रक्रिया को संकुचित करते आया है लेकिन प्रतिवंधित नही किया है
जनपद से आप क्या समझते है पूरी जानकरी दीजिये
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मृत्युदंड होना चाहिए या नहीं पहली सोच:-
किसी भी व्यक्ति को यदि राज्य जान दे नहीं सकता तो राज्य को यह भी हक नहीं है कि कसी की जान ले भी नहीं सकता , यदि कोई राज्य में गलत काम कर रहा है तो उसे उस राज्य से निकल देना चाहिए न कि उसको मृत्युदंड देना चाहिए यह व्यक्ति के मानव अधिकार का उल्लंघन है |
मृत्युदंड होना चाहिए या नहीं दूसरी सोच:-
वहीं दूसरी तरफ राज्य में यह कानून होते है जिसमें लिखा होता है मनुष्य ने इतना गलत कार्य किया है इसमें उस मनुष्य को जीने का अधिकार नहीं है, उसे मर देना चाहिए ताकि उसकी तरह कोई और कृत्य न करे यह दूसरी सोच है | लेकिन कुछ लोगों के अपने विचार है जिसमे वो कहते है यह पीड़ादायक नहीं होना चाहिए|
आपको बता दें दुनिया के अलग अलग देशों में (ज्यादातर पश्चिमी देश ) ऐसे – ऐसे कानून है जिसमें गुनेगार को बिलनी के तारों से टार्चर किया जाता |
को बिलनी के तारों से टार्चर किया जाता |
भारत देश में मृत्युदंड को लेकर क्या प्रावधान है :-
भारत में यह प्रतिवंधित नहीं है या हम कहें भारत में ऐसे बहुत से कानून है जिनमे लिखा है यदि दोषी ने कोई ऐसा कृत्य किया है तो उसमे उसको मृत्यु दंड दियाजायेगा लेकिन पिछले कुछ दशकों के कुछ कोर्ट के निर्णय आये है उसमें इसको कम से कम लोजिक बना दिया जाये|
निम्नलिखित केसों पर बहुत अध्यन हुआ और उसमे बताया गया कि मृत्युदंड की सजा कैसी होनी चाहिए?
बच्चन सिंह केस – Rarest of rare मामलों में फंसी डी जाएगी
दीना दयाल केस –कम से कम पीड़ादायक
दया याचिका पर भी कानूनी सुनवाई
सुनवाई देरी होने पर उम्र कैद में बदल देना
भारत देश में ऐसा कानून है जिसमें यदि किसी भी दोषी को मृत्युदंड दिया गया हो तो वह राष्टपति से माफ़ी की अपील कर सकता और यदि राष्ट्रपति उस माफ़ी को अस्वीकार कर दे, फिर से वह इन्सान कानूनी प्रक्रिया कर सकता है या यह कह सकता राष्ट्रपति महोदय को पूरी जानकारी नहीं दी गयी है लिए मै इस प्रक्रिया को फिर से कानूनी बनाना चाहता हू |
विधि आयोग ने अपनी 35वी रिपोर्ट, जो 1967 में लागू हुयी थी, उसमे इसकी चर्चा की और फांसी या मृत्युदंड सबसे सटीक माध्यम बताया, लेकिन बच्च सिंह केस या दीना दयाल केस में इसको उचित तो बतया गया लेकिन जितना कम पीड़ादायक हो बह प्रिक्रिया होनी चहिये | मृत्युदंड, उस व्यक्ति के खिलाफ कानूनी दंड है जो उसने किया है और यह ipc की धाराओं में निहित है
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