वर्तमान में जिस तरह से भारतीय संस्कृति, सभ्यता और सामाजिक त्यौहारों को मनाने की प्रक्रिया खत्म होती जा रही, वह भारतीय सभ्यता के लिये बहुत दुखद साबित हो सकता है इसी तरह से जब भारत देश आजाद नहीं हुआ था उस समय आदिवासी, वनवासी अपने त्यौहारों को अपने अंदाज में मनाया करते थे इसी तरह सरहुल त्योहार है जिसे भारतीय परम्परा के अनुसार नया वर्ष भी कहा जाता है इस लेख में इसे समझेंगे तथा यह त्यौहार क्यों मनाया जाता है और इसका अर्थ क्या है ?
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सरहुल को नव वर्ष क्यों कहा जाता है?
यह आदिवासियों का वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला है एक प्रमुख पर्व है । पतझड़ के बाद जब पेड़-पौधे की टहनियों पर हरी-हरी पत्तियां और फूल निकलने लगती है जैसे कि, आम के पेड़ में फूल आते हैं जिन्हें मंजर कहां जाता है तथा सखुआ और महुआ के फुल आते हैं, जिससे पूरे वातावरण में एक अलग प्रकार के सुगंध आती है तब सरहुल पर्व को मनाया जाता है। सरहुल पर्व आदिवासियों का प्रमुख “प्रकृति” पर्व है।
यह त्यौहार प्रत्येक वर्ष चैत्र शुक्ल पक्ष के तृतीय से शुरू होकर चैत्र पूर्णिमा के दिन तक होता है तथा इसमें “साल अर्थात सखुआ” के वृक्ष का विशेष महत्व है। आदिवासियों की रीति रिवाज एवं परंपरा के अनुसार इस पर्व के बाद ही कोई नई फसल विशेषकर गेहूं की कटाई की जाती है। इसी पर्व के साथ आदिवासियों का “नव वर्ष” यानी की “Happy New year” शरू होता है |
आदिवासियों द्वारा सरहुल पर्व कब मनाया जाता है?
यह पर्व वसंत ऋतु में मनाए जाने वाला आदिवासियों का प्रमुख त्यौहार है। वसंत ऋतु में जब पेड़ ‘पतझड़ में अपनी पुरानी पतियों को गिरा कर टहनियों पर नई-नई पत्तियां और फूल लाने लगती है, तब समझा जाता है कि यह पर्व मनाया जाना चाहिए तथा यह पर्व मुख्यतः चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष के तृतीय से शुरू होता है और चैत्र पूर्णिमा को समाप्त होता है। अंग्रेजी तिथि के अनुसार यह पर्व अप्रैल में मुख्य रूप से मनाया जाता है। कभी- कभी यह मार्च के अंतिम सप्ताह में भी मनाया जाता है।
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FAQ
यह दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है पहला ‘सर’ और दूसरा ‘हुल’ , यहां सर का अर्थ है “सरई” अर्थात सखुआ या साल पेंड़ के “फूल और फल” से होता है। जबकि हुल का अर्थ ‘क्रांति’ से है। इस प्रकार से सखुआ के फूलों की क्रांति को ही ” सरहुल’ के नाम से जाना जाता है |
सरहुल त्योहार मुख्य रूप से आदिवासियों द्वारा मनाया जाने वाला एक प्रकृति पर्व है। यह त्यौहार ‘झारखंड’ में मुख्य रूप से मनाया जाता है। इसके अलावा मध्य प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में इस त्यौहार को बड़े धूमधाम से मनाया जाता |
वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला त्योहार ‘सरहुल’ प्रकृति से संबंधित पर्व है। “मुख्यतः यह फूलों का त्यौहार है।” पतझड़ ऋतु के कारण इस मौसम में ‘पेंडों की टहनियों’ पर ‘नए-नए पत्ते’ एवं ‘फूल’ खिलते हैं। इस पर्व में ‘साल’ के पेड़ों पर खिलने वाला ‘फूलों’ का विशेष महत्व है।
मुख्यत: यह पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है। जिसकी शुरूआत चैत्र माह शुक्ल पक्ष की तृतीया से होती है और चैत्र पूर्णिमा के दिन तक मनाया जाता है।